रिश्ते
दायरे तो बढ़ रहे हैं
मेरी मुलाकातों के
पर पता नहीं क्यों लगता है
सिमटती जा रही है मेरी दुनिया,
रिश्तो की भीड़ में
जब तक गिरे ना कोई,
थामने वाले हाथों का
पता कहां चलता है|
दायरे तो बढ़ रहे हैं
मेरी मुलाकातों के
पर पता नहीं क्यों लगता है
सिमटती जा रही है मेरी दुनिया,
रिश्तो की भीड़ में
जब तक गिरे ना कोई,
थामने वाले हाथों का
पता कहां चलता है|
©Dr. Rashmi Jain
Absolutely, Excellent poem
ReplyDeleteThank you so much for your appreciation.
Deleteबढ़िया
Deleteबढ़ते दायरे सिमटते रिश्ते
Shukriya sir
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