एहसास
मन की गिरहें खुलने का एहसास तो था,
उन शिकवो और शिकायतों पर
धूल की चादर पड़ चुकी थी अब,
जिसे झाड़ने का न वक्त था न मन
पर फिर भी न जाने क्यों
सुबह तकिया गीला मिलता था।
©Dr. Rashmi Jain
मन की गिरहें खुलने का एहसास तो था,
उन शिकवो और शिकायतों पर
धूल की चादर पड़ चुकी थी अब,
जिसे झाड़ने का न वक्त था न मन
पर फिर भी न जाने क्यों
सुबह तकिया गीला मिलता था।
©Dr. Rashmi Jain
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