Friday, April 24, 2020

रिश्ते

दायरे तो बढ़ रहे हैं
मेरी मुलाकातों के
 पर पता नहीं क्यों लगता है
सिमटती जा रही है मेरी दुनिया,
 रिश्तो की भीड़ में
 जब तक गिरे ना कोई,
 थामने वाले हाथों का
पता कहां चलता है|

©Dr. Rashmi Jain

Wednesday, April 22, 2020

ख़ामोशी

क्यों ख़ामोशी है इतनी दरमियान
क्या कुछ खो गया है?
रुक रुक कर चल रहे है
या चलते चलते रुक जाते है अरमान यहाँ?
ये कैसी ज़िन्दगी है?
जहा हँसी भी ठंडी होती है
और सपने बेरंग |

©डॉ रश्मि जैन

Sunday, April 19, 2020

ओस  की  बूँद

कोहरे की चादर  में लिपटी
ओस  की बूंद
चमकती  है  ऐसे  जैसे
गहरे समंदर  में  सीप  के मोती
किसी  आयत  की तरह
अपनी  मुकम्मल मंजिल  की
तलाश करती

©  Dr. Rashmi Jain
Poem from  my collection entitled 'Safar'