Thursday, December 10, 2020

अलफ़ाज़

 

अलफ़ाज़

यह अलफ़ाज़ ही तो है जो तुम्हें

मुझ तक और

 मुझे तुम तक ले जाते हैं,

मेरे दिलो-दिमाग का आईना बन

 दर्शाते हैं मेरा प्रतिबिंब,

यह अल्फाज ही तो मेरी शख्सियत हैं

 जो गुमनामी के अंधेरों से

 मेरा हाथ थामे ले आए हैं मुझे रोशनी तक,

एक परछाई की तरह मेरा साथ देते हैं

हर एहसास को दिल से बयां करते,

यह जो सुनाई देती हूं ना मैं, या

जो पढ़ते हैं मुझे,

 अल्फ़ाज़ों की ही तो नेमत है

 वरनासबाल्टर्न’ की कोई जुबान होती है क्या?

 इन्हीं अल्फ़ाज़ों ने आवाज दी है मुझे

  वरन एक स्त्री का बोलना किसे पसंद है,

 हां, इन अल्फाजों ने मुझे आजादी दी है

उन तमाम बंदिशों से, सोच के दायरों से, समाज से उपजी कुंठाओ से जो

स्त्री को मूक मानते हैं,

 जिनके लिए स्त्री पूज्य तो है पर शायद परिपक्व और परिपूर्ण नहीं

 यह अल्फाज ही मेरी धरोहर है,

 मेरा वंश है,

जो मेरे जाने के बाद भी

मुझे जीवित रखेंगे

 कहीं ना कहीं,

 किसी ना किसी के मानस पटल पर या अंतर मन में,

 जो अल्फ़ाज़ आज मेरी ताकत है

 कल शायद यह किसी और को वह उर्जा दें

जो इसने मुझे दी है

बड़ी ताकत है इन अल्फाजों में

माद्दा रखते हैं गहराइयों तक ले जाने का

या पंखों को उड़ान देने का,

जिंदगी बदलने की ताकत रखते हैं अल्फ़ाज़,

बस इन्हें सुनना जरूरी है, मन से |

 *This poem is from my hindi poetry collection Alfaaz published in 2020

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